अभी हाल ही में जेएनयू में गरीबी पर एक अंतर्रा़ष्टीय सेिमनार का आयोजन िकया गया। इस सेिमनार पर काफी पैसा खर्च हुआ, लेिकन मुझे लगता है िक इस तरह के सेिमनार आयोिजत करने का क्या फायदा है िजसके बारे में सोचने के िलए ये सेिमनार आयोिजत िकए जाते हैं वो तो वहीं का वहीं हैं।
उन्हीं लोगों के िलए ये चार लाइनें
जब रात यहां पर होती है,
जब सारी िदल्ली सोती है,
एक तबका बसता है यहां,
िजसकी चादर छोटी है,
सर ढके या पैर ढके,
सारी रात ये दुिवधा होती है,
सारी रात ये दुिवधा होती है।
Sunday, October 12, 2008
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