Sunday, October 12, 2008

अभी हाल ही में जेएनयू में गरीबी पर एक अंतर्रा़ष्टीय सेिमनार का आयोजन िकया गया। इस सेिमनार पर काफी पैसा खर्च हुआ, लेिकन मुझे लगता है िक इस तरह के सेिमनार आयोिजत करने का क्या फायदा है िजसके बारे में सोचने के िलए ये सेिमनार आयोिजत िकए जाते हैं वो तो वहीं का वहीं हैं।

उन्हीं लोगों के िलए ये चार लाइनें

जब रात यहां पर होती है,
जब सारी िदल्ली सोती है,
एक तबका बसता है यहां,
िजसकी चादर छोटी है,
सर ढके या पैर ढके,
सारी रात ये दुिवधा होती है,
सारी रात ये दुिवधा होती है।