Sunday, October 12, 2008

अभी हाल ही में जेएनयू में गरीबी पर एक अंतर्रा़ष्टीय सेिमनार का आयोजन िकया गया। इस सेिमनार पर काफी पैसा खर्च हुआ, लेिकन मुझे लगता है िक इस तरह के सेिमनार आयोिजत करने का क्या फायदा है िजसके बारे में सोचने के िलए ये सेिमनार आयोिजत िकए जाते हैं वो तो वहीं का वहीं हैं।

उन्हीं लोगों के िलए ये चार लाइनें

जब रात यहां पर होती है,
जब सारी िदल्ली सोती है,
एक तबका बसता है यहां,
िजसकी चादर छोटी है,
सर ढके या पैर ढके,
सारी रात ये दुिवधा होती है,
सारी रात ये दुिवधा होती है।

2 comments:

हेमेन्द्र मिश्र said...

bhai aapke idea to thik hai khaskar aapki kavita kafi aachi hai.padhkar aacha laga

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

nava kagaz ki gahara hai pani ,
zindgi ki yahi hai kahani
fir bhi herhal me muskura ke
duniadari padegi nibhani
baat to 100%sahi hai per rasta kya hai bhai
swagat hai aapka per photo se pahchanna mushkil hai koi accha photo daliye na
dr.bhoopendra