बस अब बहुत हुआ....अब हम और कत्लेआम नहीं देख सकते....अभी पिछले हमले के बारे में लिखते हुए स्याही भी नहीं सूखी थी कि एक बार फिर नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में ही 40 लोगों को मौत के घाट उतार दिया....नक्सलियों ने जवानों के साथ-साथ आम लोगों से भरी बस को लैंड माइन ब्लास्ट में उड़ा दिया....बस में सवार लोगों के चिथड़े-चिथड़े उड़ गए....लेकिन कब तक आखिर कब तक ये सिलसिला इस कदर चलता रहेगा....आखिर कब तक नक्सली खूनी खेल खेलते रहेंगे....अगर अब भी सरकार नहीं चेती तो इसका परिणाम बेहद भयावह होगा....नक्सलियों को अपना आदमी अपना आदमी मानकर उनके खिलाफ सेना का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा....लेकिन कोई उनसे ये पूछे कि क्या अपना आदमी अपने आदमी के सीने पर बंदूक चला सकता है....क्या अपने आदमी को ब्लास्ट से उड़ा सकता है....शायद नहीं अगर कोई वास्तव में अपना आदमी होगा तो वो ऐसा नहीं करेगा....वास्तविकता यही है कि नक्सली अपने आदमी नहीं हैं....नक्सली आतंकवादी बन चुके हैं....वो बेगुनाह लोगों को मौत के घाट उतार रहे हैं....जिस विचारधारा को लेकर वो अपना अभियान चला रहे हैं....अब वो विचारधारा बहुत दूर जा चुकी है....जो लड़ाई नक्सली लड़ रहे हैं....वो जल, जंगल और जमीन की लड़ाई नहीं वो सत्ता हथियाने की लड़ाई है....जल, जंगल और जमीन की आड़ लेकर नक्सली सरकार के समांतर अपने आप को खड़ा करना चाहते हैं....जैसा नेपाल में देखने को मिल रहा है....कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि सरकार आदिवासियों से उनकी जमीन छीन रही है....कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए आदिवासियों को उजाड़ा जा रहा है....लाल डोरा के अंतर्गत आने वाले इलाकों में विकास कार्यों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा....अलग-अलग लोगों पर नक्सलियों के खिलाफ सहानुभूति दिखाने के लिए अपने अलग-अलग तर्क हो सकते हैं....माना नक्सलियों के ये तर्क वाजिब हैं....अगर किसी से उसका घर, जमीन छिनी जाएगी तो बेशक वो हथियार उठाने को मजबूर हो सकता है....लेकिन बेगुनाहों का खून बहाना कहां तक उचित है....सत्ता बंदूक की नली से होकर गुजरती है....नक्सली माओ के इस कथन को लेकर भले ही अपनी लड़ाई लड़ रहे हों....लेकिन वो शायद इस बात से अंजान हैं कि वर्तमान दौर में सत्ता बंदूक की नली से होकर नहीं गुजरती....विशेषकर एक लोकतांत्रिक देश में सत्ता और बंदूक के बीच कोई संबंध नहीं होता....सरकार की इच्छाशक्ति की देर है वरन् आज नहीं तो कल सरकार इन आतंकवादियों के खिलाफ सेना के इस्तेमाल को हरी झंडी दे ही देगी और उसे दे देनी चाहिए....बस ज्यादा वक्त नहीं लगेगा नक्सलियों का सफाया करने में....आखिर कब तक हम अपने जवानों का खून पानी की तरह बहते देखेंगे.....
अमित कुमार यादव
अमित कुमार यादव
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