Thursday, May 21, 2009

बदलते मिजाज

मौसम को रंग बदलते देखा है, बादलों को करवट लेते देखा है, लेकिन आज पहली बार दोस्तों को बदलते देखा है....आईआईएमसी की यादों ने एक बार फिर मुझे जकड़ लिया और एक बार फिर मैं पहुंच गया अपने उन्हीं हसीन दिनों में....लेकिन इतनी मीठी-मीठी यादों के बीच एक कड़वे अनुभव से पाला पड़ गया....कल तक जो दोस्त थे....आज दुश्मन तो नहीं कह सकते....पर हां यह कह सकते हैं कि ऐसे दोस्त नहीं रहे....जैसे उन दिनों में हुआ करते थे.... साथ खाना, साथ पीना, किसी दोस्त के प्यार को पाने में उसकी मदद करना.... माफ कीजिएगा एक राज की बात है लेकिन सच है इसलिए मुझे लिखते हुए कोई संकोच नहीं है....कभी-कभी तो पूरी रात किसी एक लड़की के बारे में बातें करते करते गुजर जाती थी और तो और कई-कई दिनों तक एक-दूसरे के कमरों पर ही वक्त गुजरता था....लेकिन जैसे ही संस्थान के दरवाजे से बाहर निकले....सारा मंजर ही कुछ और है....न अब वो दोस्त है जो परेशानी में हौसला देता था....न वो थाली है जिसमें साथ बैठकर हम लोग खाना खाया करते थे....लेकिन इन सब के बीच पीड़ा तब होती है....जब पता चलता है कि कल तक जो दोस्त तारीफ किया करता था....आज पता चलता है कि पीछे से बुराई कर रहा है....और एक दूसरे के बारे में ऐसी बातें की जा रही हैं....जिन पर विश्वास नहीं होता....कि वो ऐसा कर सकता है....जिस पर इतना भरोसा था....खैर ये सिर्फ मेरी बात नहीं है....ये उन सब दोस्तों की बात है....जो कल तक साथ थे....औऱ आज इस भीड़भाड़ में इधर-उधर खो गए हैं....बस अपनी बात बशीर बद्र के इस शेर के साथ खत्म करता हूं कि.....”उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए”....

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