पत्रकारिता का हथियार पैसा और जुगाड़....हो सकता है कि कुछ लोगों को इस बात से कोई इत्तेफाक न हो....और उन्हें ये बात सही न लगती हो....लेकिन मेरे संगी-साथी जो....मेरी तरह खबरों की इस दुनिया में संघर्षरत हैं....उन्हें जरुर इसके कुछ मायने नजर आएंगे....आजकल खबरों की दुनिया में दो ही लोगों की चांदी है....जिसके पास या तो किसी रसूखदार व्यक्ति का जुगाड़ है....या फिर वो किसी ऐसे संस्थान से कोर्स कर रहा है....जिसने उसे नौकरी देने का वादा किया हो....मैं यहां पर अपने ही कुछ अनुभव बांटने की कोशिश कर रहा हूं....जिनके बारे में जानकर शायद आप भी मेरी बातों से कुछ इत्तेफाक रखें....मैंने 2005 में दिल्ली विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के कोर्स में दाखिल लिया....ऊपर वाले की नजर अच्छी थी....लिहाजा कोर्स के बीच में ही एक चैनल को पांच महीने अपनी निशुल्क सेवा देने के बाद हमें एक छोटी सी नौकरी मिल गई....2008 में कोर्स खत्म हुआ....हम चैनल में खबरों को समझने में ही लगे हुए थे....यानि नौकरी कर रहे थे....तब हमें भारतीय जनसंचार संस्थान में दाखिला मिल गया....तो हम नौकरी छोड़कर एक बार फिर पीजी डिप्लोमा करने वहां जा पहुंचे....हमारे साथ जो हमारे कुछ मित्र भी पास होकर निकले थे....उनमें से कुछ तो अब भी मेरी तरह अपनी रातें काली कर रहे हैं....यानि फ्री में ही चैनलों में नाइट शिफ्ट में लगे हुए हैं....कुछ लोगों ने ऐसे चैनलों के संस्थानों में दाखिला ले लिया.....जो एक मोटी रकम वसूलने के बाद....नौकरी देने का वादा करते हैं.....शायद आप जान ही गए होंगे कि मैं किनके बारे में बात कर रहा हूं....हम पूरे नौ महीने पत्रकार बनने की कोशिश करते रहे....अब ये तो हम भी नहीं जानते कि हम पत्रकार बन पाये या नहीं....लेकिन मेरे जिन मित्रों ने चैनलों के संस्थानों में दाखिला लिया था....वो जरुरु मीडिया क्लर्क बन गए....मैं यह नहीं कह रहा कि वो लोग पत्रकार नहीं हैं....बल्कि मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि हम लोग खबरें लिखने में ही लगे रहे....जबकि वो लोग एक प्रोफेशनल की तरह बाइट, और पीटीसी की पत्रकारिता में हाथ आजमाते रहे....आज आलम यह है कि उनमें से कोई किसी चैनल में एंकर है....कोई रिपोर्टर बनने वाला है....और हम करीब एक साल नौकरी करने के बाद भी दोबारा इंटर्नशिप कर रहे हैं....आम भाषा में कहा जाए तो....बिना पैसे की मजदूरी....अच्छा कुछ लोग ऐसे भी थे....जिन्होने पूरे कोर्स के दौरान मस्ती की.... हालांकि मस्ती हमने भी की....लेकिन टोटल मस्ती नहीं की....हां तो मैं कह रहा था कि कुछ लोगों ने पूरे कोर्स के दौरान मस्ती की....और फिर जय जुगाड़ बाबा की....लग गए किसी को तेल लगाने में और बन बैठे आज की पत्रकारिता के पत्रकार...खैर ये है हमारी आधुनिक पत्रकारिता का चेहरा....पत्रकारिता का हथियार....पैसा और जुगाड़....
अमित कुमार यादव
Friday, May 22, 2009
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1 comment:
patrkarita ka hathiyar......paisa aur jugaad....kaise in rasto par vo manjil milegi jiske liye har roj
thokar khakar bhi ham aage hi badhte ja rahe hai .........
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