Tuesday, June 23, 2009

सफर...कुछ खट्टे मीठे अनुभव


आज बहुत दिनों के बाद बाइक को आराम देकर ऑटो रिक्शा का सफर किया... दुपहिया को छोड़कर तिपहिया का सफर काफी थकान भरा था... लेकिन इस सफर में वर्तमान में चल रहे हालातों से बारीकी से रुबरु होने का मौका मिला... आज की सुबह शायद अपनी जिंदगी में दसवी या ग्यारहवी बार सुबह पांच बजे उठा... जल्दी जल्दी में दिनचर्या की शुरुआत कर ऑफिस पहुंचने के चक्कर में ऑटो के लिए सड़क पर जा खड़ा हुआ... ऑटो आया... खचाखच भरा हुआ था... पेड़ के एक सिरे से लटकते फल की तरह मैं भी ड्राइवर की सीट पर लटक गया... फिर कुछ ऐसी बातें सुनने को मिलीं... जिनसे मैं अंजान तो नहीं था... लेकिन उन्हें लेकर इतना गंभीर भी नहीं था... जैसे विश्वयापी मंदी... हालांकि मंदी से मैं भी अछूता नहीं हूं... मैं भी इन दिनों मंदी के भंवर में फंसा हुआ हूं... लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं... जिन्हें इस मंदी ने कहीं का भी नही छोड़ा है... अब तक मैं यह सिर्फ अखबारों और टीवी पर पढ़ और देख रहा था... लेकिन कल ऑटो में दो लोगों की बातचीत सुनकर मुझे अहसास हुआ कि... मंदी का दौर कितना भयानक है... पिछली सीट पर बैठे एक शख्स की बातों पर जब मैंने गौर किया तो... पता चला कि मंदी से पहले वो छ लोगों की रोजी-रोटी का सहारा था... उसका अपना ठेकेदारी का काम था... और उसने छ लोगों को नौकरी पर रखा हुआ था... लेकिन आज हालात ये है कि छ लोगों को नौकरी देना तो दूर... वो खुद के लिए कोई काम नही जुटा पा रहा है... दूसरा शख्स एक प्राइवेट फैक्ट्री में काम करता था... उसकी हालत तो काफी खराब थी... घर में छ लोगों के ऊपर वो एक कमाने वाला था... और उसे भी पिछले तीन-चार महीनों से सैलरी नही मिली थी...खैर मेरे उतरने का समय नजदीक आ पहुंचा था...मैंने ऑटो से उतर गया... और आगे के सफर के लिए मैं डीटीसी की बस में सवार हुआ... लेकिन मेरा दिमाग अब भी उन लोगों के बारे में सोच रहा था... कि मैं तो अकेला हूं... घर में हम पांच लोग हैं... लेकिन भगवान की कृपा से जिंदगी मजे से गुजर रही है... मंदी की खबरें पढ़कर डर तो लगता है... लेकिन सिर्फ नौकरी न मिलने के सिवाय मेरे पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ा... हालांकि मंदी में भी मेरे पास मौके आए... लेकिन बदकिस्मती से मैं उन्हें भुना नहीं सका... बहरहाल मैं बस में बैठा उन लोगों के बारे में ही सोच रहा था... तभी एक हमउम्र शख्स ने मेरे हाथ में एक पर्चा थमाते हुए... मुझसे उस पर लिखे हुए पते के बारे में बताने को कहा... उस पर्चे पर लिखा था... कि हम लोग युवाओं को फिल्मों में मौका दिलाते हैं... और अब तक हमारे यहां से निकलकर कई लोग फिल्मों की इस रंगीन दुनिया का हिस्सा बन चुके हैं... सूर्या प्रॉडक्शन हाउस... पता लक्ष्मी नगर.... मैंने ये सब पढा... और मन ही मन मुझे एक खीझ भरी हंसी आई... मेरा जो अनुभव रहा है... उसके आधार पर मैंने उसे इसके पचड़े में न पड़ने की सलाह दी... तो उसने बताया कि... मैं नौकरी की तलाश में... और फिल्मों में अपनी करियर बनाने के लिए मध्य प्रदेश से दिल्ली में आया हूं... मेरे पिताजी एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे... जो मंदी की भेंट चढ़ गयी... मैं घर में सबसे बड़ा हूं... अब सब मेरे कंधों पर आ टिका है... उसकी बातें सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ...और मैंने सोचा कि नौकरी की तलाश में कितने ही युवा इस तरह ठगी का शिकार बन जाते हैं... क्योंकि इस तरह के संस्थान सिवाय युवाओं को बेवकूफ बनाने के और कुछ नहीं करते... अब तक मैं मंदी के भंवर में ही फंसा हुआ था... मेरी मंजिल करीब आ चुकी थी... और कुछ देर बाद मैं एक कांच की बिल्डिंग में दाखिल हुआ... जो कि मेरा ऑफिस है... मंदी फुर्र हो चुकी थी... अब सब कुछ रोजाना की तरह था... अचानक बुद्धु बक्से पर नजर गयी... और जो मैंने देखा... उसे देखकर मैं हैरान रह गया... आज पूरे सफर के दौरान मंदी से ही पाला पड़ा था... औऱ जो खबर मैंने देखी... वो मंदी के इस दौर में एक हैरान करने वाली घटना थी... सिटी ग्रुप के एशिया-प्रशांत के सीईओ को नब्बे करोड़ रुपए का सैलरी पैकेज मिला है... इस मंदी के दौर में इतनी बड़ी कमाई वाकई हैरान कर देने वाली थी... दूसरे मुंबई में एक सात सितारा होटल खोला गया... ये सब उस मंदी का दौर है... जिसमें कर्मचारियों की सैलरी कट रही है... छंटनी हो रही है... कंपनियां बंद हो रही है... और इधर तो सब कुछ उल्टा ही नजर आता है... दोपहर के दो बज चुके थे... और मेरे घर जाने का वक्त हो चुका था... मेरे जेहन में कुछ सवाल हिलोरें ले रहे थे... और मैं अब तक उनके जवाब ढूंढने की कोशिश में लगा हुआ है... थोडे सोचने-विचारने के बाद मुझे ये लगा कि... चाहे सूखा पड़े... या बारिश हो... या फिर मंदी का भयावह दौर हो...कुल मिलाकर इन सब की मार आम आदमी पर ही पड़ती है... और लोग तो सिर्फ इसकी तपिश महसूस करते हैं...

1 comment:

अति Random said...

tapish bhi mehsoos nahi hoti shayad ghane pedo ki chaya me kuch ghar aise bante hai jinhe suraj sirf roshni deta hai dhoop nahi